रूस की क्रांति (Russian Revolution) -:
रूस की प्रथम क्रान्ति 1905 में और दूसरी क्रांति 1917 ई. में हुई। रूसी जनता की पहली क्रांति तो असफल हो गई। परन्तु दूसरी क्रांति में उन्होंने पूरे जारशाही को उखाड़ फेंका और जनता की भलाई हेतु बहुत सारे सुधार किए
उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में लगभग समस्त यूरोप में सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक परिवर्तन हो गया था। सामंतवादी तथा अत्याचारी जनमानस से छुटकारा मिल चुका था।
अधिकांश क्षेत्रों में जारशाही समाप्त हो चुका था तथा शासन की डोर मध्यम वर्ग में आ गया था। परन्तु रूस अभी भी जारशाही शासन व्यवस्था का शिकार था।
जब रूस में निरंकुश जारशाही व्यवस्था के खिलाफ जब आंदोलन छिड़ा तो यह आंदोलन की क्रांति रूसी क्रांति के नाम से प्रसिद्ध हुई।
रूस की क्रांति ने बुर्जुआ वर्ग ( जिसे पूंजीपति वर्ग के नाम से भी जाना जाता है ) का अंत कर दिया और देश के शासन में सर्वहारा वर्ग या श्रमिक वर्ग का शासन स्थापित किया।
निकोलस द्वितीय रूस का अंतिम जार शासक था जिसे 1917 में रूसी क्रांतिकारीयो ने हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट कर दिया।
रूस की जनता को अपने स्वतंत्रता के लिए 2 क्रांति करनी पड़ी। उन्होंने अपनी आजादी के लिए 2 क्रांति की।
1905 की रूसी क्रांति -:
रूस में जनता पर अत्याचार किए जा रहे थे रूस का शासक जार निकोलस द्वितीय समय एक क्रूर एवं निर्दई व अत्याचारी जार था उसने अपने शासनकाल में जनता के साथ बहुत ही अत्याचार व घिनौना व्यवहार किया तथा क्रांति करने वाले श्रमिकों तथा दलों को कुचलने के लिए कठोर नीति अपनाई।जनता के भाषण लेखन व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए गए और तो और गैर रूसी लोगों को रूसी बनाने की प्रक्रिया जारी हो गई थी। राज्य व सेना के उच्च पदों पर एक विशेष वर्ग का एकाधिकार होता था। रूस के सामंत जार की निरंकुशता के समर्थक थे। राज्य की कर्मचारी अधिकारी गलत व्यवहार व गलत नीति अपनाकर जनता पर अपना कहर बरसाते थे और उनका आर्थिक शोषण करते थे।
परन्तु कुछ समय बाद जनता दार्शनिक, विचारको, लेखको के विचारो से प्रभावित होकर वे अपने अधिकार मांगने लगे।
1904 में रूस और जापान के मध्य युद्ध आरम्भ था जिसमे जापान विजयी हुआ था। इस कारण विद्रोहियो को और अधिक क्रांति करने में आसानी हुई।
रूस की क्रांति (1905) के कारण (Causes of Russian Revolution in Hindi) -:
रूस में क्रांति होने के मुख्य तीन कारण हैं जो निम्न है -1. सामाजिक दशा के कारण
2. आर्थिक दशा के कारण
3. राजनीतिक दशा के कारण
1. सामाजिक दशा के कारण -:
रूस में जारशाही का शासन था इसमे सम्पूर्ण जनता को 3 वर्गों में बांट दिया गया था । ये 3 वर्ग निम्न थे -१) उच्च वर्ग
२) मध्यम वर्ग
३) सर्वहारा वर्ग
*पहला वर्ग या उच्च वर्ग में जारशाही के सदस्य सामंत उच्च अधिकारी आदि सम्मिलित थे। इनके पास धन की अधिकता थी इसलिए यह विलासिता पूर्ण जीवन जी रहे थे।
*दूसरा वर्ग या मध्यम वर्ग यह जिसमे लेखक, दार्शनिक, छोटे व्यापारी, छोटे सामन्त तथा विचारक आदि सम्मलित थे।
*तीसरा वर्ग या सर्वहारा वर्ग था इसमें कृषि, दास, कारीगर एवं मजदूर सम्मिलित थे। इस वर्ग की दशा दयनीय थी। इन्हें कठोर परिश्रम के बाद भी भरपेट भोजन नहीं मिलता था। समाज में भी इन्हें कोई स्थान नहीं प्राप्त था। उनके साथ हमेशा दुर्व्यवहार किया जाता था और इनका कहीं भी अपमान कर दिया जाता था।
यह अपने जीवन को कीड़े मकोड़ों की तरह जी रहे थे। रूसी समाज में भ्रष्टाचार व शोषण का बोलबाला सबसे अधिक इन्हीं वर्ग पर था।
2. आर्थिक दशा के कारण -:
रूस आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा था रूस में उस समय रूस की बहुसंख्यक जनता का मुख्य काम कृषि करना था। लगभग रूस की अधिकांश जनता कृषि पर ही जीवन बसेरा करती थी।
भले ही किसान खेती करते हो पर वे उसके मालिक नही थे। वे कृषि करके राजा को अधिकांश राशि कर के रूप में देते थे, पर वे जमींन के मालिक नही थे।
किसानों को यदि किसी जगह काम भी मिलता था तो उनकी मजदूरी बहुत कम थी। जिससे उनको अपना पेट पालना भी मुश्किल था। इसी दरिद्रता ने रूस में क्रांति का माहौल तैयार कर दिया।
3. राजनीतिक दशा के कारण -:
रूस की राजनीतिक दशा बहुत ही चिंताजनक थी। रूस में जार के निरंकुश शासक राज्य कर रहे थे तथा राज्य के अधिकारी जनता पर अपना हैवानियत दिख रहा थे।इसी समय कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारो से प्रभावित होकर कुछ नेता ने समाजवादी व्यवस्था की स्थापना शुरू कर दी। रूस में जब इन नेताओ ने नेतृत्व आरम्भ किया तो रूस के बहुत से श्रमिक इसमे शामिल हुए।
रूस में सर्वप्रथम 1898 में रूसी प्रजातांत्रिक दल की स्थापना हुई। मतभेद के कारण यह दल 2 भागो में बिभाजित हो गया। जिसमे पहला दल मेंशेविक तथा दूसरा दल बोल्शेविक था।
मेनशेविक दल का नेता करेंसकी था। मेनशेविक दल वाले शांति तथा अंहिसा का पालन करने वाले थे।
इसके विपरीत बोल्शेविक दल शक्तिशाली दल था। इस दल का नेता लेनिन थे। रूस के अधिकाश श्रमिक तथा मजदूर इसी दल के समर्थक थे। इस दल के लोग हिंसक वह क्रांतिकारी विचारधारा के थे यह दल क्रांति करके बलपूर्वक शासन को खत्म करके सत्ता में आना चाहते थे।
रूस की क्रांति (1905) की घटनाएं -:
रूसी सेना की पराजय का समाचार सुनकर रूसी जनता के सब्र का बांध टूट गया सारे देश में जार शाही का नाश हो, युद्ध का अंत हो ,क्रांति की जय हो, जनता की जय हो , सर्वाहारा जिंदाबाद इत्यादि के नारे बरसने लगे।इसी बीच 22 जनवरी 1905 को मजदूरों का एक संगठन जिनका मुखिया पादरी राजमहल की ओर एक प्रार्थना पत्र शांतिपूर्ण ढंग से जुलूस निकालकर जा रहा था तथा उस जुलूस में बीवी और बच्चे भी थे , तभी उन निहत्थे मजदूरों पर गोलियां बरसाई गई। 22 नवंबर 1905 को रविवार का दिन था , जिसे रूस की क्रांति में खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
जिसके कारण 1000 से भी अधिक लोग मारे गए। इस घटना को सुनकर रूस के लोगों में जैसे लहर सी दौड़ गयी। वह बहुत ही उत्तेजित हो गए और चारों ओर हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देने लगे।
हिंसात्मक घटनाओं को देखते हुए रूस के जार को जनता के आगे झुकना पड़ा। और उसने रूसी जनता के सामने कुछ घोषणा पत्र रखें ।
जिनमें कहा गया था कि -
१) नागरिकों को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी।
२) प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक रूप से स्वतंत्र होगा और वह अपनी इच्छा अनुसार किसी भी धर्म का आचरण कर सकेगा।
३) धर्म के आधार पर राज्य की ओर से कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
४) रूसी जनता को भाषागत स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
५) किसी भी व्यक्ति को कानून के अंदर ही दंडित किया जाएगा या जेल भेजा जाएगा।
६) शीघ्र ही जापान से संधि कर ली गई और युद्ध को रोक दिया गया।
७) इस क्रांति के फलस्वरूप जार ने रूसी जनता को भाषण प्रेस और संगठन की स्वतंत्रता प्रदान की तथा ड्यूमा नाम की एक निर्वाचित संस्था को कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया।
रूस की क्रांति (1905) की असफलता के कारण -:
1905 ई. की क्रांति बहुत जल्दी ही असफल हो गई क्योंकि, जार जल्दी ही अपने वादे से मुकर गया। रूस की सेना एवं सरकारी कर्मचारियों के सहयोग से उसने पूरा निरंकुश जा रही व्यवस्था को बनाए रखने में सफलता प्राप्त कर ली और इस प्रकार 1905 ई. की क्रांति में जितने भी परिवर्तन लाने का प्रयास हुआ था वह सब असफल हो गया।परंतु इस क्रांति ने जनता को जागरूक बना दिया था और जनता ने पुनः एक और क्रांति करने का मन में फैसला बना लिया। इस प्रकार 1905 में क्रांति को असफलता मिली और लोगो ने पुनः 1917 में क्रांति की शुरुआत की।
रूसी क्रांति (1905) का जनता पर प्रभाव -:
रूस के क्रांतिकारियो द्वारा 1905 की क्रांति असफल तो हुई, परन्तु 1905 की क्रांति से जनता में बहुत परिवर्तन हुए। इस क्रांति के बाद जनता जनतंत्र का महत्व समझ चुकी थी और जनता जागरूक हो चुकी थी। रूसी क्रांतिकारीयों के कारण वँहा की जनता को रूस में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना की प्रेरणा मिल चुकी थी।रूसी क्रान्ति (1905) के बाद रूसी जनता पर निम्न प्रभाव पड़ा -
1. जार की निरंकुशता का विरोध
2. सेना में असन्तोष होना
3. रूसी जनता पर विचारको का योगदान
1. जार की निरंकुशता का विरोध -:
रूस में उच्च वर्ग को छोड़कर प्रत्येक वर्ग की जनता जारशाही का विरोध करने लगी थी जनता का यह विरोध क्रांति का मुख्य कारण बना जार निकोलस द्वितीय निकम्मा था। वह अपनी रानी एलिमस और ढोंगी साधु रासपुटीन के गलत परामर्श से रूसी जनता के ऊपर अत्याचार करता था।2. सेना में असन्तोष होना -:
प्रथम विश्वयुद्ध में रूसी सैनिकों को विश्वयुद्ध में तो डाल दिया गया परंतु उनके लिए आवश्यक सामग्री नहीं दी गई तथा युद्ध के साधनों के अभाव के कारण रूसी सेना को अपमानजनक पराजय देखना पड़ा।600000 रूसी सैनिक मारे गए और 2000000 सैनिक बंदी बना लिए गए जिसका मुख्य कारण सेना को युद्ध से संबंधित साधन न देना था और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति जैसे भोजन वस्त्र इत्यादि पर ध्यान ना देना था।
जिससे रूसी सैनिक में असन्तोष की भावना उत्पन्न हो गई थी।
3. रूसी जनता में विचारको का योगदान -:
रूस में क्रांति करवाने में रूसी विचारकों का भी मुख्य योगदान रहा। उन्होंने रूस के लोगों को अपने लेख और अन्य तरह से जागरूक किया और यह बताया कि स्वतंत्रता उनका अधिकार है।रूसी लेखकों, विचारकों ने अपने माध्यम से बताया कि उन पर कोई भी किसी तरह का दबाव नहीं बना सकता है।
रूसी लेखकों, विचारकों ने, रूसी जनता को इकट्ठे होकर संघर्ष करने की प्रेरणा दी।
इन सभी विचारको में कार्ल मार्क्स की पुस्तक "दास कैपिटल" अत्यंत प्रसिद्ध है। कार्ल मार्क्स , लेनिन ,टालस्टाय , तुर्गनेव आदि विचारको ने जनता को प्रभावित कर वैचारिक क्रांति की प्रेरणा दी।
1917 में रूस की खूनी क्रांति -:
1917 ई. की रूसी क्रांति खूनी क्रांति थी और उसके इतिहास में साम्यवादी क्रांति के नाम से प्रसिद्ध हुई।प्रथम विश्वयुद्ध के भयंकर नरसंहार एवं जन-धन की अपार हानि के फलस्वरूप रूस की आर्थिक दशा सोचनीय हो गई थी। लोग भोजन के अभाव में भूख से तड़पने लगे। जिसके फलस्वरुप जार शाही के विरुद्ध 7 मार्च 1917 को भूखी नंगी जनता ने पेट्रोगार्ड नगर में जुलूस निकाला। शहर में होटलों आदि में गरमा-गरम रोटियां व अन्य खाद्य सामग्रियों को देखकर भूखी, प्यासी जनता का धैर्य टूट गया और भीड़ ने रोटियों की लूट मचा दी।
भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बड़े से बड़े अधिकारियों ने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया परंतु सैनिकों ने भूखी नंगी जनता पर गोली चलाने से साफ साफ मना कर दिया।
इस घटना के दूसरे दिन पुनः पेट्रोगार्ड में क्रांति हो गई, क्रांतिकारी रोटी-रोटी चीखते, चिल्लाते सड़कों पर उतर आए और क्रांति करने लगे।
विभिन्न कारखानों आदि में काम करने वाले लाखों की संख्या में मजदूर भी हड़ताल करके क्रांतिकारियों में शामिल हो गये। इस प्रकार 1917 की क्रांति ने बहुत ही बड़ा रूप धारण कर लिया।क्रांतिकारियों का नारा था युद्ध बंद करो, जार शासन का अंत हो , जनता का राज्य हो , जैसे नारे लगने लगे।
11 मार्च को रूस के जार ने पुनः सेना को लोगो को गोली मारने का आदेश दिया। परन्तु सेना ने जार के आदेशों की अवहेलना करते हुए क्रांतिकारियों पर गोली चलाने से पुनः एक बार और मना कर दिया।
क्योंकि वहां के सैनिक भी उसी लोगों में से थे। उन सैनिकों को भी कम खाना और वेतन दिया जाता था और उनका शोषण किया जाता था। वे आंदोलन में शामिल तो नहीं हुए लेकिन उन्होंने जार के आदेशों को ना मानकर उनके आदेशों की अवहेलना कर दी।
कुछ समय बाद क्रांतिकारियों ने मजदूरों की एक सेवियत (जिसे सभा के नाम से जाना जाता है) का गठन किया।
जिस दिन सेवियत का गठन हुआ, उसी दिन 25000 सैनिक भी सेवियत के समर्थक बन गए।
12 मार्च को मजदूरों की इस शक्तिशाली सभा ने पेट्रोगार्ड, जो रूस की राजधानी थी, पर अपना अधिकार कर लिया। राजधानी की सड़कों पर जार के विश्वासपात्र सैनिकों एवं क्रांतिकारियों के बीच घमासान युद्ध हो गया।
क्रांतिकारियों की बढ़ती शक्ति से भयभीत होकर जार निकोलस ने सिंहासन को छोड़ दिया।
इस प्रकार 15 मार्च 1917 को निरंकुश वंश का सदा के लिए अंत हो गया। जार के प्रति रूसी जनता के नफरत के भाव को देखते हुए एक कवि ने लिखा था, दांतो से चबाये हुए पान की तरह हमने उनके राजवंश को थूक कर फेंक दिया।
रूसी क्रांति (1917) के कारण -:
1. किसानों की दयनीय स्थिति के कारण2. श्रमिकों की हीन दशा के कारण
3. साम्यवादी विचारो का प्रभाव के कारण
1. किसानों की दयनीय स्थिति के कारण -:
रूस में किसानों की संख्या अधिक थी और उच्च वर्ग के लोग इनका शोषण करते थे और इतना कम उनको कर देने के बाद बचता था कि किसानों का पेट भी नहीं भर पाता था। जिसके कारण रूस की जनता असंतुष्ट हो गई और उसने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई छेड़ दी।2. श्रमिकों की हीन दशा के कारण -:
19वीं सदी में औद्योगिक विकास तो हुआ परंतु उच्च वर्ग के लोग अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में मजदूर लोगों का शोषण करने लगे।मजदूरों को बहुत कम वेतन दिया जा रहा था और उनसे बहुत अधिक काम लिया जा रहा था। यह भी रूस में पुनः क्रांति करने का कारण बना
3. साम्यवादी विचारो का प्रभाव के कारण -:
मार्क्स और लेनिन के विचारों के कारण सर्वहारा वर्ग अर्थात मजदूर वर्ग अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना करने लगा था और वह जार की दुर्व्यवस्था से निकलना चाहता था।रूसी क्रांतिकारियों के प्रमुख उद्देश्य -:
1. रूसी क्रांतिकारी, रूसी समाज में शांति की स्थापना करना चाहते थे। वे निरंतर युद्ध से ऊब गए थे इसलिए वे शांति चाहते थे।2. किसानों की आर्थिक दशा को देखते हुए क्रांतिकारी चाहते थे कि, किसानों को भूमि का स्वामी बनाया जाए।
3. पूंजीपतियों द्वारा किसानों व मजदूरों का आर्थिक शोषण समाप्त करने के लिए, क्रांतिकारी उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे।
4. पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करना क्रांतिकारियों का मुख्य उद्देश्य था।
5. रूसी क्रांतिकारी समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करना चाहते थे।
6. रूसी क्रांतिकारी रूसी जातियों के साथ समानता के पक्ष में थे।
रूसी क्रांति के परिणाम -:
1) इस क्रांति के फलस्वरूप रूस में सदियों से चले आ रहे स्वेच्छाचारी निरंकुश जारशाही शासन का अंत हो गया।2) इस क्रांति के परिणाम स्वरूप रूस में किसानों तथा श्रमिकों का शोषण समाप्त हो गया।
3) सामन्त वर्ग एवं चर्च की शक्ति का अंत हो गया।
4) देश से पूंजीवादी व्यवस्था समाप्त हो गई तथा देश की संपूर्ण संपत्ति एवं उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित हो गया।
5) रूस में लोकतंत्रात्मक व्यवस्था के आधार पर किसानों एवं श्रमिकों की सरकार बनी।
6) देश के संसाधनों का प्रयोग व्यक्तिगत हित के लिए ना होकर बहुजन हिताय किया जाने लगा।
7) रूस में समाज कल्याणकारी राज्य की स्थापना हुई।
8) रूसी साम्राज्यवाद का अंत हो गया जो देश रूस के उपनिवेश थे उन्हें स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई।
9) सामाजिक और समानताएं समाप्त हो गई गैर रूसी जातियों को समानता का अवसर प्राप्त हुआ तथा उन्हें भाषा एवं संस्कृति की रक्षा का अवसर प्राप्त हुआ।
10) लेनिन के नेतृत्व में रूस में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई।
11) इस क्रांति के फलस्वरूप रूस में औद्योगिक विकास की गति तेज हो गई।
12) रूस सेवियत संघ के रूप में संसार के सामने महाशक्ति के रूप में अवतरित हुआ।