वेल्डन जोड़ (Welding Joint) किसे कहते हैं?

जैसा कि हम जानते हैं किसी भी धातु या अधातु को वेल्डिंग से जोड़ने के लिए सबसे पहले उन्हें कहीं पर रखना होता है। जब उन धातु या अधातु को वेल्ड करने के लिये कहीं पर रखा जाता है तो सबसे पहले यह तय किया जाता है कि इनको कहां पर और किस स्थिति में रखना है।

हो सकता है दोनों धातुओं या अधातुओं को वेल्ड करने के लिए क्षैतिज अवस्था में रखा जा रहा है या दोनों को ऊर्ध्वाधर में  रखा जा रहा हो।

या फिर ऐसा भी हो सकता है कि दोनों धातु या अधातु को एक दूसरे के लंबवत रखा जा रहा हो जिसमें एक धातु खड़ी हो और एक धातु क्षैतिज हो। इतना होने के बाद भी उसमें देखा जाए कि उनके बीच दूरी कितनी है या फिर वह एक दूसरे से स्पर्श कर रहे हैं कि नही स्पर्श कर रहे हैं।

इन सब स्थितियों का आकलन करके उन्हें वेल्ड के माध्यम से जोड़ा जाता है। जिसमें सबसे अधिक ध्यान में दिया जाता है कि दोनों कार्यखण्ड किस स्थिति में है उनके बीच कितनी दूरी है या नहीं है।


वेल्डन जोड़ (Welding Joint) किसे कहते हैं?


वेल्डन जोड़ (Welding Joint) की परिभाषा -:

दो धातु या दो अधातु को अलग-अलग मानक पोजीशन के अनुसार रखकर वेल्ड जोड़ लगाने की प्रक्रिया ही वेल्डिंग जॉइंट कहलाती है। इसमें दोनों जोड़े जाने वाली धातुओं व अधातुओं के पोजीशन की प्रधानता होती है कि वह किस पोजीशन और किस स्थान पर रखा गया है।

जब किसी दो कार्यखण्डों को आपस में जोड़ना होता है तो पहले निश्चित किया जाता है कि कार्यखण्डों को किस पोजीशन में रखकर वेल्डिंग करना है।

वेल्डिंग ज्वाइंट बनाते समय कभी दोनों कार्यखण्ड एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं तो कभी दोनों कार्यखण्डों के बीच थोड़ी दूरी होती है। कभी-कभी दोनों कार्यखंड ऊर्ध्वाधर होते हैं तो कभी दोनों एक दूसरे के लम्बवत होते हैं। इन स्थितियों में रखने के बाद ही कार्यखण्ड को वेल्ड जोड़ के माध्यम से जोड़ा जाता है।


अतः हम कह सकते हैं कि वेल्डिंग जोड़ में कार्यखण्ड की स्थिति तथा पोजीशन तय करती है कि वह किस स्थिति में है कार्यखण्ड  की स्थिति तय होने के बाद ही उनको वेल्ड करके जोड़ा जाता है और यही स्थिति और पोजिशन वेडिंग जॉइंट के प्रकारों को तय करते हैं।