ऐसी रंग जो कई तरह के तेल या साफ किये गए पेट्रोल में मिलाकर प्रयोग करने की लिए बनाया जाते हैं उन्हें तेल रंग (Oil Color) कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि तेल रंग, जल रंगो की अपेक्षा अच्छे होते हैं और उनसे स्थाई होते हैं। 19वी शताब्दी के समय तेल रंगों का उपयोग यूरोप में हुआ था। परन्तु पूर्वी देशो में तेल रंग के उपयोग का वर्णन नहीं मिलता है।
भारत में तेल रंगों का उपयोग 1800 ई. के लगभग शुरू हो गया था तेल रंगो के चित्रकारी करने में त्रावणकोर के राजा रवि वर्मा का नाम लिया जाता है। कुछ समय के लिये भारत में तेल रंग का उपयोग बहुत ही तेजी से फैला, परन्तु यह धीरे धीरे कम होता गया और फिर से जल रंग का उपयोग अब किया जाने लगा है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जल रंगों से बने चित्र अधिक स्थायी और टिकाऊ होते हैं जिसके फलस्वरूप तेल रंग का उपयोग कम होने लगा है।
तेल रंगों के माध्यम से बनाए गए चित्र में यह गुण पाया जाता है कि कुछ समय बीतने के बाद यह पीले पड़ने लगते हैं खासकर जो चित्र नमी और अंधेरे में रखे होते हैं वह चित्र जल्दी पीले पड़ जाते हैं। तेल रंग को लगाते समय अगर चित्र में पहली तह सुख जाए तभी दूसरी तह को लगाना चाहिए। अगर पहली तह सूखने के बाद दूसरी तह लगाई जाए तो चित्र के चटकने का डर नही रहता है।