धर्म सुधार आंदोलन -:
इस आंदोलन की सफलता का श्रेय जर्मनी के मार्टिन लूथर को जाता है, जिन्होंने धर्म में उपस्थित बुराइयों का विरोध किया और प्रोटेस्टेंट नामक नवीन संप्रदाय की स्थापना की ।
धर्म सुधार आंदोलन कोई हितकारी प्रक्रिया नहीं थी। यह केवल इसलिए किया गया था कि धर्म में व्याप्त बुराइयों और कमियों का विरोध किया जा सके और उस विरोध के फलस्वरूप उनकी कमियों को दूर किया जा सके। इसलिए ही धर्म सुधार आंदोलन हुआ।
धर्म सुधार आंदोलन में मार्टिन लूथर की मुख्य भूमिका रही। मार्टिन लूथर का जन्म 10 नवंबर 1483 में हुआ था। इनका जन्म जर्मनी में हुआ था। इनका जन्म जर्मनी के सेक्सन्नी राज्य में हुआ था। उनके पिता का नाम हैंस लूथर था।
इनकी शिक्षा जिसमें हुई उस यूनिवर्सिटी का नाम है यूनिवर्सिटी ऑफ अर्फ़र्ट। इन्होंने अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद कुछ समय तक प्रध्यापक का कार्य किया और बाद में पादरी भी बने।
ये एक जर्मन भिक्षु थे। मार्टिन लूथर की मौत 18 फरवरी 1546 में हो गया। इन्होंने हमेशा धर्म में व्याप्त बुराइयों का विरोध किया, परंतु कुछ समय बाद इन्होंने उन बुराइयों और और कमियों को दूर करने के लिए धर्म सुधार आंदोलन का प्रारंभ कर दिया और इनको उसमें सफलता मिली। इन्होंने ने एक नए धर्म की स्थापना की जिसका नाम प्रोटेस्टेंट था।
धर्म सुधार आंदोलन के कारण -:
1. चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं बुराई
2. यूरोप के शासकों का सहयोग
3. पोप के आमानवीय कृत्य
4. पुनर्जागरण के फलस्वरुप राष्ट्रीयता की भावना
5. व्यवहारिक धर्म की आवश्यकता
6. समाज में तर्क पूर्ण चिंतन का विकास
7. प्रगतिशील विचारों का अभ्युदय
धर्म सुधार आंदोलन की प्रमुख परिणाम -:
धर्म सुधार आंदोलन का यूरोप पर व्यापक प्रभाव पड़ा था -
1. कैथोलिक धर्म में सुधार
2. प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय
3. इंग्लैंड का विकास
4. शासक वर्ग की शक्ति में वृद्धि
5. पोप की शक्ति का पतन
6. राजकीय संपत्ति और शक्ति में वृद्धि
7. गिरजाघर में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास