फ्रांस की क्रांति - कारण, राष्ट्रीय महासभा के कार्य, परिणाम

फ्रांस की क्रान्ति कोई अनहोनी घटना नहीं थी बल्कि वर्षों से चली आ रही दुर्व्यवस्था एवं कुशासन का परिणाम थी। 18वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में फ्रांस में निरंकुश और स्वेच्छाचारी सम्राटों का शासन था।

इस समय पादरियों, सामन्तों एवं उच्च अधिकारियों को राज्य की ओर से विशेषाधिकार प्राप्त थे। ये लोग वैभव एवं विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे लेकिन साधारण वर्ग का दशा अत्यधिक सोचनीय थी। उनका जीवन-स्तर निम्न कोटि का था।

इसका मुख्य कारण राजाओं की निरंकुशता,अयोग्यता एवं शासन सम्बन्धी विभिन्न अनियमितताएँ थीं। इन परिस्थितियों का ज्ञान इस उदाहरण से हो जाता है कि जब फ्रांस के राजा और रानी की सवारी के पीछे भूखी-नंगी जनता भूख से व्याकुल होकर रोटी दो-रोटी दो' के नारे लगाते हुए दौड़ रही थी तो परिस्थिति से अनजान रानी ने कहा था-"यदि रोटी नहीं मिलती तो केक क्यों नहीं खाते।"

फ्रांस की क्रांति - कारण, राष्ट्रीय महासभा के कार्य, परिणाम

फ्रांस की क्रान्ति के कारण -:

फ्रांस में 1789 ई० की क्रान्ति संसार की अनोखी घटनाओं में से एक थी। फ्रांस की अव्यवस्थित राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा के कारण फ्रांस की क्रान्ति का बीज अंकुरित हुआ।

फ्रांस की क्रान्ति के निम्न कारण थे-
1. राजनीतिक कारण
2. आर्थिक कारण
3. सामाजिक कारण
4. तत्कालीन कारण

1. राजनीतिक कारण :-

● निरंकुश राजा- 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में राजा की निरंकुशता, अयोग्यता एवं शासन सम्बन्धी
अनियमितताओं ने जनता को क्रान्ति के लिए प्रेरित किया। फ्रांस के राजा अपनी शान शौकत के लिए राजकोष का दुरुपयोग करते थे।
जिसके कारण फ्रांस की जनता ने राजतन्त्र का मुखर विरोध किया। राजाओं की निरंकुशता के कारण जनसाधारण के मन में क्रान्ति की चिनगारी सुलगने लगी।

● असमान और अनिश्चित कानून- इस समय फ्रांस की कानून-व्यवस्था में अनेक मौलिक दोष उत्पन्न हो गये थे। धनी,पादरी और सामन्त (कुलीन वर्ग) राजकीय करों से मुक्त थे, जबकि गरीब जनता करों के भारी बोझ से दबी थी। देश पर विदेशी ऋण का बोझ बढ़ता जा रहा था। व्यापार की दशा भी सन्तोषजनक नही राह गई थी। परिणाम में फ्रांस की जनता क्रान्ति के लिए प्रेरित हो गई।

2. आर्थिक कारण -:

राजघराने द्वारा धन पानी की तरह बहाया जाता था। राजघराने के इर्द-गिर्द घूमने वाले लोग जनकल्याण की ओर ध्यान न देकर अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति में लिप्त थे। अन्दर ही अन्दर इन लोगो ने राजकोष को खाली कर दिया था।
साथ ही इंग्लैण्ड के साथ लगातार युद्ध होने से भी राजकोष पर बुरा प्रभाव पड़ा।
देश का आर्थिक ढाँचा चरमराकर टूट गया। देश की
बहुसंख्यक जनता रोटी के लिए हाय-हाय करने लगी।
धन की कमी को पूरा करने के लिए जनता पर अनेक कर लगाये जाते थे और इनकी वसूली भी बड़ी निर्दयतापूर्वक की जाती थी।
कृषकों की आय एवं उपज का अधिकांश हिस्सा करों के रूप में ले लिया जाता था।
फ्रांस में पादरियों और सामन्तों तथा उच्च वर्ग के लोगों पर कोई कर नहीं लगाया जाता था। इस प्रकार दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था ने भी फ्रांस में क्रान्ति को प्रेरित करने का कार्य किया।

● जनसाधारण का जीवन कष्टों से भरा हुआ था। इसके परिणामस्वरूप 1789 ई० में फ्रांस में भीषण जन-विद्रोह हुआ और यहाँ के निरंकुश राजतन्त्र का अन्त हुआ तथा फ्रांस में लोकतन्त्र की स्थापना हुई।

● इस क्रान्ति में फ्रांस फ्रांस की जनता ने तत्कालीन राजा लुई सोलहवाँ एवं उसकी रानी मेरी आन्तोआन्त को मौत के घाट उतार दिया गया।

● इस क्रान्ति के फलस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप युद्ध की ज्वाला में जलता रहा। यह रक्तपात 14 जुलाई, 1789 ई० को बास्तील की घटना के साथ प्रारम्भ हुआ और 18 जून, 1815 ई० को वाटर लू के युद्ध के साथ समाप्त हुआ।

3. सामाजिक कारण -:

फ्रांस का समाज वर्ग-भेद पर आधारित था। इस समय फ्रांस के समाज में तीन वर्ग में विभाजित थे
●पादरी वर्ग
●कुलीन वर्ग
●जनसाधारण वर्ग

पादरी वर्ग में कैथोलिक चर्च के उच्च पादरी (पुरोहित) या उच्च धर्माधिकारी आते थे। उच्च पादरी वर्ग अनेक विशेषाधिकारों से युक्त था। इनका जीवन भोग-विलास एवं वैभव से परिपूर्ण था। धन की अधिकता से इस वर्ग का चारित्रिक एवं नैतिक पतन हो गया था। वास्तव में इस वर्ग के लोग समाज में घृणा के पात्र बन गये थे।
कुलीन वर्ग में सामन्त, राज परिवार के सदस्य एवं उच्च अधिकारी शामिल थे। इस वर्ग के लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त थे तथा ये लोग विशेषाधिकारों का प्रयोग जनसाधारण के शोषण के लिए भी करते थे।
फलत: इस वर्ग के प्रति जनाक्रोश स्वाभाविक था। जनसाधारण वर्ग भी तीन उपवर्गों में विभाजित
था-मध्यम वर्ग, किसान वर्ग, मजदूर वर्ग।

मध्यम वर्ग में अध्यापक, वकील, व्यापारी, कवि, लेखक, कलाकार, दार्शनिक तथा धनी व्यवसायी आदि सम्मिलित थे।इस वर्ग की आर्थिक स्थिति तो ठीक थी किन्तु ये समाज में उपेक्षित थे। पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों द्वारा इन्हें समय-समय
अपमानित होना पड़ता था। आर्थिक सम्पन्नता होने पर भी यह वर्ग समाज में उच्च वर्ग द्वारा उपेक्षित होने के कारण असन्तुष्ट था।

किसान वर्ग में मख्य रूप से किसान सम्मिलित थे ।फ्रांस में इनकी जनसंख्या 80% के लगभग थी। इनका आर्थिक जीवन वर्ग करों के बोझ से दबा था। दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण यह वर्ग भी सन्तुष्ट न था तथा यह वर्ग करों के बोझ से दबा था।
इस कारण ये सामाजिक भेदभाव भी फ्रांस की क्रांति का कारण बने।

● दार्शनिक तथा लेखकों के विचार का प्रभाव -:

फ्रांस की क्रांति में दार्शनिकों तथा लेखकों के विचार का भी गहरा प्रभाव पड़ा क्योंकि लेखकों ने अपने लेख के माध्यम से तथा अपने विचारों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया कि क्यों और किस कारण से फ्रांस इस भुखमरी या लोगों के दैनिक स्थिति का कारण है।

4. तात्कालिक कारण -:

फ्रांस में वित्तीय संकट चल रहा था। राजा भी कंगाल हो गए थे और जनता भी कंगाल हो गई थी। इस हालत में फ्रांस के शासक लुई 1789 में एस्टेटस जनरल का अधिवेशन बुलाकर नए कर लगाने का प्रस्ताव किया। जिसका जनता ने खुलकर विरोध किया और मांग की कि एस्टेटस जनरल की संयुक्त बैठक बुलाई जाए।
राजा ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया और सभा को भंग करने का निर्णय लिया। इसके विरोध में जनसाधारण वर्ग ने अपने पास एक सभा रखी और संविधान बनाने की तैयारी करने लगे। इसके कारण राजा को झुकना पड़ा।
परंतु राजा ने गुप्त योजना के माध्यम से पूरी सभा समाप्त करनी चाही जिसका पता जनता को चल गया और 14 जुलाई 1789 को फ्रांस में भीषण क्रांति प्रारंभ हो गई।

फ्रांस की क्रांति की प्रमुख घटनाये -:

क्रांति का आरम्भ -:

एस्टेटस जनरल फ्रांस की प्राचीन संसद थी जिसमें तीन सदन थे अर्थात तीन वर्गों का प्रतिनिधित्व था प्रत्येक वर्ग का अलग-अलग अधिवेशन होता था। 1664 के बाद अब इसका कोई अधिवेशन नहीं हुआ था।
एस्टेटस जनरल के सदस्यों की कुल संख्या 1214 थी जिसमें 308 पादरी वर्ग 285 कुलीन वर्ग और 621 जनसाधारण वर्ग के सदस्य थे। राजा ने धन की कमी को पूरा करने के लिए इस आशा से 1789 में इसका अधिवेशन बुलाया कि वह नया कर लगाने की अनुमति दे देगी। लेकिन जनता वर्ग ने इस कर का विरोध किया और संयुक्त अधिवेशन की मांग की।
राजा तथा दरबारी वर्ग ने सयुक्त अधिवेशन का विरोध किया तथा सभा को भंग करना चाही।
जनता वर्ग ने सभा से हटने से इंकार कर दिया इसी बीच बैठक में "तृतीय सदन क्या है" के प्रश्न पर हंगामा होने लगा।
फ्रांस के प्रसिद्ध विवेता एबीसीएज ने एक पुस्तिका वितरित की जिसमें लिखा था 'तृतीय सदन ही राष्ट्र का पर्याय है'।
6 मई 1789 को तीनों वर्गों के सदस्यों ने अलग-अलग भवनों में बैठक की। जनसाधारण वर्ग का नेतृत्व मिराबो ने ग्रहण किया

टेनिस कोर्ट की शपथ -:

फ्रांस की राजा लुई सोलहवां ने सामान तो कुली नो व पादरियों के दबाव में आकर साधारण वर्ग के सभा भवन को बंद करा दिया तथा ईश्वर को सभा स्थगित करने का आदेश दिया राजा के इस आदेश के विरोध में तृतीय सदन के सभी सदस्य सभा भवन के निकट स्थित टेनिस कोर्ट के मैदान में एकत्रित हो गए तथा तृतीय वर्ग के नेता अमीर आबू की अध्यक्षता में सभी ने शपथ ग्रहण किया कि जब तक हम देश के लिए नया संविधान नहीं लिख लेते तब तक हम यहां से नहीं हटेंगे भले ही हमें मार दिया जाए या हमारे ऊपर अत्याचार किया जाए साधारण वर्ग के लोगों द्वारा लिया गया यह शपथ टेनिस कोर्ट की शपथ कहलायी।

राष्ट्रीय सभा -:

तृतीय सदन के सदस्यों की इस घोषणा से लुई सोलहवां भयभीत हो गया और उसने 27 जून 1789 को तीनों सदनों की संयुक्त बैठक की अनुमति दे दी तथा एक स्टेटस जनरल को राष्ट्रीय सभा की मान्यता प्रदान की। इस सभा में 9 जुलाई 1789 ईस्वी को संविधान सभा का कार्यभार ग्रहण कर लिया।

बास्तील का पतन -:

राजा और सामंतों ने मिलकर तृतीय सदन को तथा संविधान बनाने वाली सभा को भंग करने की योजना बनाई परंतु पेरिस में यह अफवाह है गया कि राजा विदेशी सेना की ताकत से सभी देशभक्त  एवं क्रांतिकारियों को मरवाना चाहता है जिससे फ्रांस की  जनता उत्तेजित हो गई और 14 जुलाई 1789 को हिंसक आक्रमण कर दिया बास्तील की जेल जो राजा के अत्याचार की प्रतीक मानी जाती थी उसे लोगो ने तोड़ फोड़ दिया।
यह घटना राजा के निरंकुशता को रोकने का प्रथम ऐलान था।
इसलिए फ्रांसीसी लोग इस दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं।

राष्ट्रीय महासभा के प्रमुख कार्य -:

मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा -:

राष्ट्रीय सभा ने 27 अगस्त 1789 को मानो और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा की जिसके अनुसार कानून की दृष्टि में सही व्यक्ति समान थे।

विशेषाधिकारों की समाप्ति -:

4 अगस्त 1789 को राष्ट्रीय सभा ने सामंती तथा उच्च वर्ग इत्यादि लोगों के विशेष अधिकार की समाप्ति के लिए प्रस्ताव पारित किए।

चर्च द्वारा सम्पति संग्रह पर रोक -:

10 अक्टूबर 1789 को राष्ट्रीय सभा ने कानून बनाकर चर्च द्वारा संपत्ति संग्रह पर रोक लगा दी और चर्च की संपूर्ण जायदाद को छीनकर नीलाम कर दिया और उसे राष्ट्रीय आय में सम्मिलित कर दिया गया।

समान कर प्रणाली -:

राष्ट्रीय महासभा ने देश के सभी वर्गों के लिए एक समान कर लागू किया जिसमें किसी भी वर्ग के लिए ऊंची नीची किसी अन्य कर नहीं लगाए जा सकते थे।

धर्मिक स्वतन्त्रता -:

राष्ट्रीय महासभा ने फ्रांस के प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक विचारों की स्वतंत्रता प्रदान की तथा वे अपने अपने धर्म को किसी भी तरीके से मना सकते थे

राजा के सीमित अधिकार -:

राष्ट्रीय महासभा ने देश के लिए संविधान की व्यवस्था कर के राजा की लगभग सभी अधिकारों को सीमित कर दिया राजा से बहुत सारे अधिकार छीन लिए गए तथा राजा को ऐसे अधिकार नहीं दिए गए , जिससे वे दूसरे किसी अन्य वर्ग या किसी भी प्रकार की बुराई फैला सकें।

पेरिस की महिलाओं का वर्साय अभियान -:

 राष्ट्रीय सभा में अधिवेशन काल में 5 अक्टूबर 1789 को पेरिस की 10,000 महिलाओं ने लुईस 16 को पकड़कर पेरिस लाने के लिए वर्साय की ओर प्रस्थान किया और उसे उसके परिवार सहित पेरिस लाने में सफल भी हुए।
 फ्रांस की यह घटना "चुडैलों के धावा" के नाम से प्रसिद्ध है।

व्यवस्थापिका सभा -:

दरबारियों की सलाह पर राजा ने 21 जून 1791 को फ्रांस से भागने की योजना बनाई किंतु भागते समय वह सपरिवार पकड़ लिया गया अब उसे कैद करके रखा किया।
1 अक्टूबर 1791 को व्यवस्थापिका सभा का प्रथम अधिवेशन हुआ इस समय तक फ्रांस की जनता दो विचारधारा में बढ़ चुकी थी जैकोबिन और जिरोनदिस्त।
जिरोंदिस्त अहिंसक तरीके से धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहते थे जबकि जकोबिन बहुसंख्यक थे और वे क्रांति को तेजी से बढ़ाना चाहते थे व्यवस्थापिका सभा के प्रथम अधिवेशन में सदस्यों की कुल संख्या 745 थीं।
इसमे म260 संविधानवादी , 100 जैकोबिन , 36 जिरोदिनस्त तथा 349 स्वतंत्र विचारधारा के सदस्य थे।
इस सभा के अधिवेशन की अवधि में फ्रांस का 26 अप्रैल 1792 को आस्ट्रिया के साथ युद्ध हुआ 21 सितंबर 1792 को फ्रांस में गणतंत्र की घोषणा करके व्यवस्थिका सभा भंग हो गई।

राष्ट्रीय सम्मेलन -:

21 सितंबर 1792 को राष्ट्रीय सम्मेलन का पेरिस में अधिवेशन हुआ इस समय के क्रांति दल के नेता दांते , मैरेट , तथा राबस्पीयर थे जो एक के बाद एक मारे गए उनकी मृत्यु के बाद फ्रांस में आतंक के शासन का अंत हो गया। जैकोबिनो ने लुई 16वे को क्रांति का विरोधी बताकर 21 जनवरी 1793 को गुलोटिन मशीन द्वारा मौत के घाट उतार दिया।
इसमें फ्रांस में अराजकता पैदा हो गई सामूहिक हत्याएं की गई तथा जिरोदीस्ट के सदस्यों का कत्लेआम कराया गया ।फ्रांस में या घटना" सितंबर का हत्याकांड" के नाम से प्रसिद्ध है।

डायरेक्टरी का गठन -:

नवीन संविधान के अनुसार फ्रांस में डायरेक्टरी की स्थापना की गई। इस व्यवस्था के अनुसार फ्रांस का शासन 2 सदनों वाली डायरेक्टरी के हाथ में आ गया और शासन के सर्वोच्च अधिकार पांच सदस्य वाले एक संचालक मंडल को दिए गए डायरेक्टरी ने 27 अक्टूबर 1795 से 10 नवंबर 1799 तक फ्रांस का शासन चलाया इस काल में फ्रांस की आंतरिक दशा बिगड़ती चली गई किंतु वह विदेशी क्षेत्र में फ्रांस की महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त हुई डायरेक्टरी के शासनकाल में फ़्रांस में नेपोलियन बोनापार्ट का उत्थान हुआ नेपोलियन के कारण में फ्रांस में सैनिक शासन स्थापित हो गया।

नेपोलियन बोनापार्ट का युग -:

नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांसीसी सेना का सेनापति एवं विलक्षण प्रतिभा का धनी था। फ्रांस में देश के शासन की कमान संभालने वाली डायरेक्टरी को 1799 में भंग कर उसका अस्तित्व समाप्त कर दिया गया।
1799 से 1804 तक उसने फ्रांस में कई महत्वपूर्ण सुधार किया नेपोलियन के समय में फ्रांस यूरोप का सर्वाधिक समृद्ध और शक्तिशाली देश बन गया।
नेपोलियन फ्रांस में अपनी शक्ति मजबूत कर ली और 1804 में फ्रांस का सम्राट बन बैठा नेपोलियन 1805 में ऑस्ट्रिया 1806 में प्रसाद 1807 में रूस को पराजित कर अपनी शक्ति के चरम शिखर पर पहुंच गया।
 अब उसने व्यापार नियम लागू कर इंग्लैंड को निशाना बनाया किंतु अंग्रेजों की नौसैनिक शक्ति के कारण वह असफल रहा अंत में यूरोप के मित्र राष्ट्रों ने संगठित होकर 1813 में उसे लिपजिंग में हराया फिर भी भारी जनसमर्थन के कारण वह पुनः सत्तासीन हो गया।
1815 में मित्र राष्ट्रों ने वाटर लू नामक स्थान पर उसे पुनः पराजित कर दिया।
 अंत में 5 मई 1821 को सेंट हेलेना दीप में निर्वासन में उसकी मृत्यु हो गई। नेपोलियन द्वारा लागू की गई शासन व्यवस्था बहुत समय तक चली । नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के पश्चात फ्रांस में 1848 में द्वितीय गणतंत्र की स्थापना हुई।


फ्रांस की क्रांति के परिणाम -:

1)फ्रांस की क्रांति ने सदियों से चली आ रही यूरोप की पुरातन व्यवस्था का अंत कर दिया।

2)इस क्रांति के परिणाम स्वरुप देश की बहुसंख्यक जनता को सामंतवाद से छुटकारा मिल गया।

3)व्यापार पर कुलीनों और सामंतों का एकाधिकार समाप्त हो गया।

4)फ्रांस में राजनीतिक चेतना के कारण नए राजनीतिक वातावरण का सृजन हुआ तथा फ्रांस में संप्रभुता के सिद्धांत की  स्थापना हुई।

5)फ्रांस में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ।
राजा की दैवी शक्ति की मान्यता समाप्त हो गई ।

6)फ्रांसीसी क्रांति ने मानव जाति को स्वतंत्रता समानता तथा बंधुत्व का नारा प्रदान किया।

7)फ्रांस की क्रांति ने विश्व के अन्य देशों में भी प्रजातंत्र के विकास को गति प्रदान की।

8)इस क्रांति के परिणाम स्वरुप फ्रांस ने कृषि उद्योग कला साहित्य शिक्षा व सैनिक गौरव क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति किया इस क्रांति के कारण फ्रांस में जनतंत्र का प्रारंभ हुआ।