स्टेनलेस स्टील की वेल्डिंग (Welding of Stainless Steel in Hindi)
यह अलॉय स्टील है। जब आयरन में 11.5% से अधिक क्रोमियम मिलाया जाता है तो अलाय की सतह पर वायुमंडलीय ऑक्सीजन के प्रभाव से क्रोमियम ऑक्साइड की पतली परत बन जाती है यह बनने वाली पतली परत आगे ऑक्सीडेशन को रोकती है और मोर्चा या कोरोजन आदि से भी धातु की सुरक्षा प्रदान करती है।
इस स्टेनलेस स्टील को तीन भागों में विभाजित किया गया है -
१.ओस्टेनॉइटिक (Austenitic)
२.फेराइटिक (Ferritic)
३.मार्टेंनसाइटिक (Martensitic)
इस स्टील की वेल्डिंग में उस प्रक्रिया का प्रयोग करना चाहिये जिसमें तेजी से स्थानीय उष्मा प्रदान की जा सकती हो। स्टेनलेस स्टील के कार्यखण्ड का प्री-हीट नही किया जाता है क्योंकि इस वेल्डिंग बीड को ठंडा होने अधिक समय लगता है।
स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel) की वेल्डिंग को निम्न विधियों द्वारा आसानी से किया जा सकता है -
●ऑक्सी एसीटिलीन वैल्डिंग
●सबमर्ज्ड आर्क वैल्डिंग प्रक्रम
●शील्डेड मैटल आर्क वैल्डिंग
●इनर्ट गैस टंगस्टन आर्क वैल्डिंग
●प्लाज्मा आर्क वैल्डिंग प्रक्रम
●इनर्ट गैस मैटल आर्क वैल्डिंग
●ब्रेजिंग
●रेजिस्टेंस वैल्डिंग
कुछ प्रमुख वेल्डिंग विधियों का वर्णन -
ऑक्सी-एसीटिलीन वेल्डिंग विधि द्वारा स्टेनलेस स्टील की वेल्डिंग
इस वेल्डिंग प्रक्रिया को आस्टैनाइटिक स्टील के लिए प्रयोग में नहीं करते हैं। स्टेनलैस स्टील की वेल्डिंग काफी तीव्र गति से होता है, जिससे कारण बीड जल्दी ठंडी हों तथा अधिक कार्बाइड प्रक्षेपित न कर सके। इस लिए उदासीन फ्लेम या हल्की रिड्यूसिंग फ्लेम का प्रयोग करते हैं। इस विधि द्वारा स्टेन लेस स्टील का जोड़ बनाते समय वेल्डिंग टॉर्च को 45° पर झुकाकर रखा जाता है और पतली चादरों को Forehand Technique तथा मोटी चादरों की Backhand Technique से वेल्ड किया जाता है।
स्टेन लेस स्टील की वेल्डिंग के इलेक्ट्रोड में बेस मेटल से 1.5% से 2% तक क्रोमियम होना चाहिए।
शील्डेड मैटल आर्क वेल्डिंग विधि द्वारा स्टेनलेस स्टील की वेल्डिंग
स्टेन लेस स्टील की वेल्डिंग के लिए शील्डेड मैटल आर्क वेल्डिंग का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। इसमें ऐसे इलेक्ट्रोड नही प्रयोग किये जाते है जिनमे क्रोमियम की मात्रा बहुत अधिक होती है। क्रोमियम की मात्रा बहुत अधिक होने के कारण कुछ क्रोमियम ऑक्साइड बनकर स्लैग में चला जाता है। इस वेल्डिंग प्रक्रिया के लिए डी० सी० करण्ट का प्रयोग और रिवर्स पोलेरिटी में इलैक्ट्रोड को + Ve रखा जाता है।
इण्डियन इलैक्ट्रोड के नाम निम्न प्रकार हैं -
१. अडवानी ओवरलेकन (Advani Oerlekon)
२. इण्डियन ऑक्सीजन (Indian Oxygen)
इनर्ट गैस मैटल आर्क वेल्डिंग विधि द्वारा स्टेनलेस स्टील की वेल्डिंग
स्टेन लेस स्टील की वेल्डिंग को करने के लिए इस विधि का लगातार प्रयोग करने से फिलर वायर फीड होने से बीड अच्छी बनती है। इस वेल्डिंग में शील्डिंग गैस के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड या ऑर्गन गैस को प्रयोग में लाते हैं। इस वेल्डिंग में DC तथा AC करण्ट का प्रयोग किया जाता है। इस वेल्डिंग प्रक्रिया का प्रयोग करते समय फिलर वायर की धातु ठीक बेस मैटल की धातु के समान होनी चाहिए। क्योंकि फिलर वायर की धातु ठीक बेस मैटल की धातु के समान होने के कारण अलॉयिग एलीमेन्ट्स स्लैग में नही जा पाता है।
गैस टंगस्टन आर्क वेल्डिंग विधि द्वारा स्टेनलेस स्टील की वेल्डिंग
इस प्रक्रिया के लिए नान-कन्जूमेबिल इलैक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है और D.C. करण्ट का उपयोग किया जाता है। निम्न इलेक्ट्रोड में से किसी एक का प्रयोग करके वेल्डिंग प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है।
◆प्लेन इलेक्ट्रोड (99.5%)
◆थोरिया + Rest Tungsten (0.4% - 2.2%)
◆जर्कोनियम + Rest Tungsten (0.15% - 0.4%)